"मनुष्य की प्रत्येक इन्द्रिय का अपना धर्म है । उसे अपने धर्म का
पालन करना चाहिये ।
आँख का धर्म है समस्त प्राणियों में ईश्वर का दर्शऩ करें । कान का धर्म
है महापुरुषों की अमृतवाणी सुनना, दूसरों की अच्छाइयाँ सुनना। मुख का धर्म है
सत्य और प्रिय वचन बोलना । हाथों का धर्म है सत्कर्म करना, सेवा धर्म
अपनाना। प्रत्येक मनुष्य का धर्म है कि अपने प्रति, परिवार के प्रति, समाज के प्रति, राष्ट्र के प्रति
अपने कर्तव्यों को पूरा करें।"