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Sunday, December 2, 2012

बाल्यकाल


1358
गुरु गीता (48)

बाल्यकाल:-बच्चों को ताड़ना नहीं बल्कि प्रेरणा उन्हें आगे बढाती है ! डांट के साथ साथ प्यार भी चाहिए ! कुम्हार की तरह अंदर से सहारा दे कर बाहर से चोट मारने का काम करना चाहिए ! माँ की प्रेरणा बहुत काम करती है !बच्चों को जब चाहा डांट फटकार दिया यह गलत है , क्योंकि यह ताने उलहाने उनके विकास को रोकते हैं !विद्यार्थी काल मैं बच्चों को बहुत कुछ सिखाने की जरूरत है !

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