आप अपने हाथो से इतनी हिंसा नहीं करते जितनी वाणी से करते हें ।व्यंग्यात्मक भाषा में बोलना भी अपने आप में एक बहुत बडी हिंसा का ही कार्यहें। बाण का घाव भर जाता हें पर वाणी का घाव कभी नहीं भरता।



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